Hydra facial balm made at home.

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  Today hydra facials are in high demand and affective too . But they are too expensive.  But  taking a hydra facial from a good beauty salon is more effective because they have different equipment to do it more iffectively. But I will tell you some home remedies to get the benefits of hydra facial at home . This time I am telling you a method to make hydra facial balm,  but Ingredients needed in it you have to buy them . You can get them online easily.  * First thing I am using in this hydra facial balm is beeswax.  1. Beeswax creates a breathable barrier on the skin's surface, shielding it from external irritants like pollutants, harsh weather, and allergies.  This barrier helps to protect the skin from damage and keep it looking healthy.  2. Beeswax helps to prevent moisture loss from the skin's surface.  This helps to keep the skin hydrated, soft, and supple, especially beneficial for dry or sensitive skin.  3. It can also soothe irr...

सनातन धर्म से जुड़ी कहानियों का सही अर्थ समझें।

नमस्कार और जय सिया राम आप सभी को।संसार पुरुष और प्रकृति के मिलन से बना है , पेड़ पौधे जीव जंतु मनुष्य सभी इसका हिस्सा है, हम स्त्री और पुरुष दोनों के अंदर स्त्री तत्व और पुरुष तत्व दोनो होते हैं जिसे बताने के लिए हमारे धर्म में कई कहानियां बताई गई हैं जिनमे से एक में आज आपको बताना चाहती हूं।हमारे ऋषियों में एक महान ऋषि हुए हैं जिनका नाम भृंगी ऋषि था , वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे , किंतु वो केवल महादेव की ही पूजा करते थे परंतु माता पार्वती की पूजा नहीं करते थे , वो महादेव और पार्वती को एक नहीं मानते थे , पुरुष प्रकृति एक है इस ज्ञान से अनभिज्ञ थे। एक बार ऋषि भृंगी कैलाश पर्वत महादेव के दर्शन करने तथा उनकी परिक्रमा करने पोहंचे, परंतु महादेव समाधि में लीन थे तथा माता पार्वती उनकी बांई जांघ पर बैठी हुई थीं यह देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा , वो केवल महादेव की परिक्रमा करना चाहते थे , वो मानते थे ' शिवस्य चरणम केवलम ' इसलिए उन्होंने माता आदिशक्ति को ही कह दिया कि आप महादेव से अलग होकर कहीं और बैठ जाएं , जिससे वो सिर्फ महादेव की परिक्रमा कर सकें , माता समझ गईं कि यह ऋषि तो हैं पर इनका ज्ञान अधूरा है, इनको पुरुष होने का दंभ है , स्त्री का महत्व उनकी दृष्टि में कुछ नहीं है, यह जानने के पश्चात माता ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास करें , उन्हें स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं तथा वो और महादेव अर्ध नरीश्वर हैं , वो दोनो एक ही हैं किंतु वो नहीं माने और सर्प बनकर दोनो के बीच में से निकलकर परिक्रमा करनी चाही किंतु विफल हो गए , फिर उन्होंने मूषक बनकर उनकी परिक्रमा करनी चाही जिससे महादेव की समाधि भंग हो गई, समाधि से निकलते ही महादेव समझ गए कि क्या हो रहा है परंतु माता पार्वती के विषय में हस्तक्षेप करना उचित नहीं लगा इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, जब वे माता की कोई बात नहीं माने तब उन्हे स्त्री का सम्मान कराने के लिए उन्हें श्राप दे दिया की ये जो आप स्त्री को शून्य और पुरुष होने का दंभ लेकर रहते हो तो में आपको श्राप देती हूं कि आपके शरीर से आपकी माता का स्त्री तत्व निकल जाए और केवल आपके पिता का पुरुष तत्व रह जाए । ऐसा कहते ही उनके शरीर से उनकी माता का स्त्री तत्व निकल गया और वे धराशाई होकर गिर गए, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सभी मनुष्यों के शरीर में हड्डियां तथा पेशियां पिता से मिलती हैं तथा रक्त और मास माता के अंश से प्राप्त होता है , इसलिए उनके शरीर से तभी मास तथा रक्त अलग हो गया , शरीर में रह गईं तो केवल हड्डियां और पेशियां । उस समय उनकी मृत्यु तो नहीं हुई क्योंकि वो उस समय कैलाश के अविमुक्त क्षेत्र में थे और स्वयं सदाशिव और महामाया उनके सामने उपस्थित थे, उनके प्राण हरने के लिए यमदूत वहां आने का प्रयास ही नहीं कर सकते थे , अत्यधिक पीड़ा से ऋषि भृंगी अत्यधिक बेचें हो गए, क्योंकि उनको सही मार्ग दिखाने के लिए माता ने ये सब किया था इसलिए महादेव ने कुछ नहीं कहा । श्राप के चलते ऋषि भृंगी समझ पाए कि पितृ शक्ति किसी भी सूरत में मातृ शक्ति से परे नहीं है, माता और पिता मिलकर ही इस शरीर का निर्माण करते हैं , इसलिए दोनो ही पूज्य हैं, इसके पश्चात उन्होंने उसी पीड़ा में ही माता की पूजा की जिससे माता ने प्रसन्न होकर उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया जिससे उन्हें उस पीड़ा से मुक्ति मिली किंतु उन्होंने संसार को ये बताने के लिए की स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं और उनकी सोच सही नहीं थी उन्होंने उसी शारीरिक अवस्था में रहने का निर्णय लिया जिसके पश्चात महादेव तथा माता पार्वती ने जो अर्ध नारीश्वर के रूप में थे उन्हें अपने गणों में प्रमुख स्थान दिया , वे ठीक से चल पाएं इसके लिए उन्हें तीसरा पैर प्रदान किया ।

इस तरह हमको स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं तथा संसार में समान स्थान के अधिकारी हैं यह शिक्षा यह कहानी हमको बताती है , धन्यवाद, अगर मेरी यह कहानी आपको अच्छी लगी हो तो कृपया मुझे कॉमेंट में अवश्य बताएं , जय श्री कृष्ण और जय श्री राधे आज।

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